Tuesday, 23 December 2014
धर्म
धर्म भीतर की आध्यात्मिक ता को थाम के रखता है । धर्म एक ही होता है पर संप्रदाय कइ होते है । हर संप्रदाय अलग अलग भौगोलिक परिस्थिति के आधार पर मानव समाज के हीतो की रक्षा के लीए बनाए जाते है । पर संप्रदाय के और समाज के रक्षक ही उसके भक्षक बन गए है । समाज सुधारक के रुप में आज के नेता उसके ठेकेदार बन गए है । पैसा,सत्ता और ताक़त के जोर पर नेता संप्रदायों के कमज़ोर वर्गों को लालच देकर संप्रदाय परीवर्तन करने को मजबूर करते है । जो काम पहले अंग्रेज़ और फीर मुग़ल कीया करते थे आज वह हमारे ही चुनें हुए कुछ नेता करते है । ऐसे भी संप्रदाय अपने भारत देश में है,जो संविधान के तहत मौलिक अधिकार का लाभ जरुर उठाते है पर संविधान के कानुन के डायरे से बाहर है । और ख़ुद के संप्रदाय के कानुन बनाकर चलते है । केवल स्वार्थ ही जीसका धर्म है ऐसे नेता उसकी रक्षा करते आए हैं । मेरा नेताओं से निवेदन है की संप्रदायों के युध्ध को छोड़ देश के विकास की और ध्यान दे । धर्म अपनी रक्षा करना जानता है और हर युग मैं उसका रक्षक हाजीर रहता है ।
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